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लेखनी कहानी -11-Jan-2022 एक दूजे के लिए

भाग 2 


उधर मोना का मूड बहुत ही खराब था । इतनी सी भी बात नहीं मानी अतुल ने । टी शर्ट की ही तो बात थी । उसकी पसंद नापसंद का कोई खयाल नहीं है उसको । वैसे तो बड़ा प्यार जताता है लेकिन मर्दानगी भी झाड़ता है । मैं आज के जमाने की नारी हूं कोई पुराने जमाने की अनपढ़ गंवार स्त्री नहीं जो अपने मर्द की हर बात मानने को विवश थी । सारा मजा किरकिरा कर दिया एनीवर्सरी का उसने। मोना का मिजाज बिगड़ गया था ।
घर के काम में मन लग ही नहीं रहा था उसका । वैसे घर का काम भी क्या था ? काम तो बाई कर रही थी ना । झाड़ू , पोंछा, कपड़े, बर्तन । सब तो बाई ही करती थी । नाश्ता और खाना कुक बनाता था । उसका काम था खुद को तैयार करना । यह काम वह बड़ी शिद्दत से करती थी । लेकिन आज मूड खराब होने से वह ढंग से तैयार भी नहीं हो पाई थी । जैसे तैसे तैयार होकर वह ऑफिस पहुंच गई। 

उसकी कुलीग "परी" सामने ही अपने केबिन में बैठी थी । हैलो हाय हुई दोनों में । मोना को वह थोड़ी अपसैट सी लगी । वह उठकर उसके पास चली गई । 
"क्या बात है परी , कुछ अपसैट लग रही हो" ? मोना ने बात शुरू करते हुए कहा। 
" हां मोना , थोड़ी सी अपसैट तो हूं । आज "अभि" की तबीयत कुछ ठीक नहीं है" 
"तो तुम्हें अपने घर पर होना चाहिए था ना अभि की देखभाल के लिए" 
"हां यार । मैंने तो बहुत कहा था मगर अभि माने ही नहीं । कहने लगे क्या करोगी पूरे दिन घर में रहकर ? और जबरदस्ती मुझे यहां भेज दिया" 
"कोई चक्कर तो नहीं चल रहा है जनाब का ? आपको यहां भेज कर कहीं गुल तो नहीं खिलाए जा रहे हैं पीठ पीछे से " ? मोना ने अपना संदेह प्रकट किया । 
"तू भी ना , आज सुबह सुबह से मार खाएगी मुझसे । एक तो मैं वैसे ही अपसैट हूं और उस पर ये सितम कर रही है तू । मैं तो ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकती हूं । अभि ऐसे नहीं हैं " 
"किसी के माथे पर लिखा रहता है क्या कि वो कैसे हैं ? मुझे तो कुछ गड़बड़ लग रहा है" । 
"मेरा अभि तो करोड़ों में एक है । मैं कितनी भाग्यवान हूं जो मुझे अभि मिले । देख , दुबारा अभि के लिए कुछ ऐसा वैसा बोलेगी तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा , हां " परी थोड़ा आवेश में बोली । 
"अच्छा बाबा नहीं बोलूंगी , बस । अच्छा , अब चलती हूं । काम भी बहुत पड़ा है अभी" । और मोना अपने केबिन में आ गई। 
लगभग दो घंटे बाद अचानक परी उसके केबिन में आई और बोली " मोना , लगता है मुझे जाना पड़ेगा । अभि को दो बार फोन लगाया था लेकिन उसने रिसीव ही नहीं किया " 
"मैंने तो पहले ही कहा था कि कुछ गड़बड़ है मगर तुम तो अपने पति परमेश्वर को पाक साफ समझती हो ना " । 
"यार, एक तो मैं वैसे ही परेशान हूं और तू अपनी बकवास से मुझे और परेशान कर रही है । मुझे तो यह डर लग रहा है कि कहीं तबीयत तो ज्यादा खराब नहीं हो गई है अभि की " ? 
"तो एक काम करते हैं । ऐसी चिंता की हालत में मैं तुम्हें गाड़ी ड्राइव करने की इजाजत नहीं दे सकती हूं । मैं छोड़ आती हूं तुम्हें । मैं भी अभि के हालचाल पूछ आऊंगी " 
"ये ठीक रहेगा" । और दोनों चल दी । 

करीब आधा घंटे बाद दोनों परी के फ्लैट पर पहुंच गई । वहां जाकर पता चला कि अभि को थोड़ा बुखार था । वह पैरासिटामोल लेकर सो गया था । फोन साइलेंट मोड पर रख दिया था । अभी अभी आंख खुली थी उसकी । परी और मोना को देखा तो उठने की कोशिश करने लगा लेकिन दोनों ने मना कर दिया उठने के लिए । वह लेटा ही रहा । 

"अब कैसी तबीयत है" परी की आवाज थोड़ा लड़खड़ा गई थी उसकी हालत देखकर । "आपने फोन रिसीव नहीं किया तो मुझे चिंता हो गई थी" परी की आंख से दो बूंद टपक गई । 
"अरे , चिंता की कोई बात नहीं है परी । मैं ठीक हूं । थोड़ा मुंह कड़वा कड़वा हो रहा है । कुछ भी खाने की इच्छा नहीं है और ये राधा (काम वाली बाई ) कभी दूध तो कभी जूस पिलाए जा रही है । मना करता हूं तो कहती है कि मैडम कह कर गई हैं । भई , आपका साम्राज्य है सब जगह । हम पर भी और राधा पर भी । हमारी तो सुनती ही नहीं है" अभि मुस्कुराते हुए बोला । 

"देखते नहीं मोना भी मेरे साथ है । जब देखो छेड़ते रहते हो " परी ने कृत्रिम गुस्से से कहा 
"अरे हां, कैसी हो मोना जी" ? 
"मैं अच्छी हूं । परी आपकी चिंता कर रही थी तो मैं भी हालचाल पूछने आ गई" मोना बोली 
"धन्य भाग हमारे जो आप पधारे । आजकल तो अतुल भी पता नहीं कहां रहता है ? दिखता ही नहीं है वह । लगता है कि दोनों में खूब छन रही है " ‌ अभि शरारत से बोला 
मोना मुस्कुरा कर रह गई । इतने में राधा किन्नू (गंगानगर, हनुमानगढ़ में पैदा होने वाला संतरा और मौसमी का मिक्स फल) का जूस बना लाई । अभि ने मना भी किया लेकिन परी ने अपने हाथों से उसे पिला दिया । मोना उन दोनों की बॉन्डिंग देखकर आश्चर्यचकित थी । 

तीनों गपशप करने लगे । अचानक अभि ने पलंग से खड़े होने की चेष्टा की । परी ने पूछा "क्या हुआ" ? 
"लगता है वॉमिटिंग आ रही है" 

परी डस्टबिन लेने दौड़ी । इतने में अभि को जोरदार वॉमिटिंग हो गई । सारा कमरा गंदा हो गया । बिस्तर पर भी कुछ गंदगी हो गई थी । 

मोना अपनी नाक पर रूमाल रखकर बाहर भागी । परी ने अभि को संभाला । उसकी पीठ सहलाने लगी । थोड़ा पानी लाई और उसे कुल्ला करवाया । उसे सहारा देकर उठाया और दूसरे कमरे में ले जाकर पलंग पर लिटा दिया । 

राधा वॉमिटिंग साफ करने लगी । परी ने उसे रोक दिया । कहने लगी "तुम कोई दूसरा काम कर लो । यह मैं करूंगी । मोना ' तुम थोड़ी देर अभि के पास बैठ कर उससे बातें करो " 

"ये तुम साफ करोगी परी " ? 
"और कौन करेगा, मोना ? अभि मेरा पति है । यह मेरा फ़र्ज़ है । यह काम मैं राधा से नहीं करवा सकती हूं । कुछ काम पति पत्नी को ही करने होते हैं" 
"आजकल की औरतें गुलाम नहीं हैं परी । पुराने जमाने की औरतें करती थीं ऐसी गुलामी। अब जमाना बदल गया है " 
"इसमें जमाने की बात कहां से आ गई मोना ? और इसमें गुलामी की क्या बात है ? कल को अगर यही घटना मेरे साथ होती तो ? रिश्तों में कोई छोटा , बड़ा नहीं होता है मोना । सब एक दूजे के लिए होते हैं । यदि ऐसे समय पर भी हम अपनों के साथ खड़े नहीं हुए तो फिर अपना क्या और पराया क्या " ? 

मोना सोच में पड़ गई । वह अभि के पास आ गई । परी ने पूरे फर्श की अच्छे से डिटॉल के पानी से सफाई की और बिस्तर भी साफ किए । फिर वह भी आकर अभि के पास बैठ गई । उसका चेहरा प्रसन्न नजर आ रहा था । अभि ने परी का हाथ अपने हाथों में ले लिया और चुपचाप लेटा रहा । 

"कितने कष्ट दे रहा हूं तुम्हें" ? 
"खबरदार जो एक शब्द भी बोला आगे" । परी ने डांट लगाते हुए कहा। अभि मुस्कुरा कर चुप रह गया ‌ मोना यह सब देख रही थी । 

अचानक मोना को याद आया कि आज तो उसकी एनीवर्सरी है । वह उठते हुए बोली " परी , अब मुझे चलना चाहिए" । 
"थैंक्स मोना , मुझे घर तक छोड़ने के लिए और अभि के पास बैठने के लिए" 
"थैंक्स तो मुझे देना चाहिए परी । मेरी आंखों पर पड़े झूठे और खोखले नारीवाद के पर्दे को हटाने के लिए । थैंक्स तो मुझे बोलना चाहिए कि रिश्ते कैसे निभाए जाते हैं , इसका पाठ पढ़ाने के लिए । आज तुमने अपने काम और व्यवहार से जो सीख मुझे दी है परी , उसे मैं जीवन भर नहीं भूलूंगी" 
"मैं कुछ समझी नहीं ? क्या कहना चाहती हो तुम" ? 
"तुम अभी समझोगी भी नहीं , परी । फिर कभी समझाऊंगी तुम्हें । अभी तो मैं चलती हूं । अभी तो "बुद्धू राम को मनाने के लिए भी तो तैयारी करनी है ना" । मोना लगभग दौड़ते हुए बोली । 

अतुल घर आते हुए सोच रहा था कि मोना को कैसे मनाया जाए ? तरह तरह की योजनाएं उसने बना ली थी । गाड़ी पार्क कर उसने घर का गेट खोला । चाबी का एक सैट अतुल के पास और एक सैट मोना के पास रहता था । अतुल के दिमाग में था कि मोना आठ बजे आएगी । अभी छ : बज रहे थे । दो घंटे में तो वह बहुत सारी तैयारी कर लेगा । ऐसा सोचते सोचते कब घर के अंदर आ गया पता ही नहीं चला । 

उसका ध्यान भंग हुआ घर की लाइट देखकर । शानदार लाइटिंग हो रही थी । वह अभी लाइटिंग देख ही रहा था कि सामने मोना दिखाई दी । अरे यह क्या ? मोना ने आज वही साड़ी पहन रखी थी जो वह उसके जन्मदिन पर लाया था । उसने आज भरपूर श्रंगार भी किया था । मोना बिंदी विंदी नहीं लगाती थी मगर आज उसने बिंदी भी लगा रखी थी, कंगन भी पहने थे और सिंदूर भी भर रखा था मांग में ‌ । वह सचमुच एक परी लग रही थी । अतुल उसे देखता ही रह गया । 

"ऐसे क्या देख रहे हो मिस्टर ? कभी अपनी वाइफ नहीं देखी है क्या" ? मोना की खिलखिलाहट पूरे कमरे में गूंज रही थी । अतुल अपनी सारी योजनाएं भूल गया था अब ‌। उसे इतना ही सूझा "मुझे माफ़ कर दो , मोना" । 

"श श श श " । मोना उसके होंठों पर उंगली रखते हुए बोली । " माफी तो मुझे मांगनी चाहिए , अतुल । मैं झूठे आडंबर में रिश्तों की कद्र नहीं कर पाई । मैंने तो तुम पर हुकूमत इख्तियार कर ली थी । जो काम कभी मर्द करते थे , वो काम मैंने किया है, अतुल । धौंस जमाने का । अपनी अपनी चलाने का । मुझमें और पुराने जमाने के मर्द में अंतर ही क्या रह गया था । परी को देखकर मेरी आंखों से पर्दा हट चुका है । मैंने तुम्हारा दिल बहुत दुखाया है , अतुल । मुझे माफ़ कर दो ना , प्लीज़ " 

अतुल को कुछ नहीं सूझ रहा था । उसने मोना के ललाट पर एक चुम्बन अंकित किया और कहा " बस, एक मिनट में आता हूं अभी" । 

जब वह तैयार होकर आया तो मोना उसे देखती ही रह गई । उसने वही टी शर्ट और जींस पहन रखी थी जो पिछले रविवार को ही मॉल से खरीदी थी । मोना के अधरों पर एक मुस्कान तैर गई और वह दौड़कर अतुल से लिपट गई । 

समाप्त 

हरिशंकर गोयल "हरि"

 


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